तृतीय
विश्व युद्ध की खनक साफ दिख रही है ??
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सीरिया
21वीं शताब्दी का सबसे बड़ा गृह युद्ध झेल रहा है। पहले ऑस्ट्रिया के हाई-वे पर एक
रेफ्रीजरेटर की लॉरी में सत्तर से अधिक लोगों की लाश मिलने से हड़कंप मचा। इसके बाद
टर्की के समुद्र किनारे तीन वर्षीय सीरियाई बच्चे की औंधे मुंह पड़ी लाश ने दुनिया
को द्रवित कर दिया है। गृह युद्ध से जान बचाकर भाग रहे सीरियाई नागरिकों की कहानी बताने
के लिए ये दो घटनाएं काफी नहीं हैं। सीरिया के मौजूदा संकट की कहानी 15 मार्च,
2011 से शुरू हुई है, जब वहां के सीमांत शहर दार में बशर-अल-असद शासन के खिलाफ पहला
प्रदर्शन हुआ। करीब चार दशक से शासन कर रहे बशर-अल-असद परिवार के खिलाफ दार में प्रदर्शन
क्यों शुरू हुआ, इसकी पृष्ठभूमि 2006 का अकाल है। यह अगले पांच वर्षों तक जारी रहा।
तब कुल उपजाऊ भूमि का 85 प्रतिशत भाग सूखे का शिकार हो गया था। खाद्य सामग्री का भंडार
समाप्त हो गया था, और लोग गांवों से शहरों की तरफ पलायन करने लगे थे। स्थिति यह थी
कि जिनकी गांव में अच्छी खासी जमींदारी थी, उन किसानों को भी अपना और अपने परिवार का
पेट पालने के लिए शहरों में सफाई कर्मचारी के तौर पर काम करना पड़ा। वैज्ञानिकों का
निष्कर्ष है कि सीरिया का यह सूखा मानव जनित मौसम परिवर्तन का नतीजा है।बड़े पैमाने
पर विस्थापित हुए एवं नरक की जिंदगी जीने को मजबूर सीरियाई किसानों में रोष व्याप्त
था। बशर-अल-असद ने इन किसानों को राहत पहुंचाने के लिए भेदभावपूर्ण काम किया। सरकारी
कुएं शियाओं को आवंटित किए गए। इससे किसानों के किशोर बच्चों के मन में विद्रोह की
चिंगारी भड़कने लगी। दार शहर के कुछ किशोरों ने रात को शहर की दीवारों पर राष्ट्रपति
के खिलाफ नारे लिखे, जिसके परिणामस्वरूप अगले दिन ही स्थानीय पुलिस ने 15 किशोरों को
गिरफ्तार कर लिया। पुलिस किसी भी देश की हो, उसका चरित्र एक सा होता है। जब पुलिस ने
किशोरों पर अमानवीय अत्याचार किए, तो स्थानीय जागरूक नागरिकों ने 15 मार्च, 2011 को
दार शहर में पहला प्रदर्शन किया। छह वर्ष के सूखे ने सीरियाई नागरिकों की सहनशक्ति
समाप्त कर दी थी। लिहाजा यह प्रदर्शन पूरे देश में फैल गया। और जब प्रदर्शनकारियों
पर फायरिंग हुई, तो विद्रोह शुरू हो गया।
संयुक्त राष्ट्रसंघ का कहना है कि इराक़ और सीरिया में जारी
अशांति इन देशों में युवा पीढ़ी की समाप्ति का कारण बन सकती है।यूनीसेफ़ के प्रभारी
ने कहा है कि इराक़ और सीरिया में जिस प्रकार से हिंसक कार्यवाहियों का क्रम जारी है
उसको देखते हुए एसा लगता है कि यह क्रम यदि इसी प्रकार से बढ़ता रहा तो इन देशों में
युवा पीढ़ी समाप्त हो जाएगी।
एंथनी लीक ने कहा कि इराक़ और सीरिया की वर्तमान स्थिति
के कारण मध्यपूर्व में लगभग एक करोड़ चालीस लाख बच्चे, नाना प्रकार के संकटों में घिरे
हुए हैं। उन्होंने कहा कि केवल सीरिया में ही लगभग साठ लाख बच्चे निराशा और हताशा में
जीवन व्यतीत कर रहे हैं जिनपर युद्ध ने बहुत गहरे प्रभाव छोड़े हैं।
राष्ट्रसंघ के अनुसार सीरिया में जारी युद्ध के कारण पिछले
पांच वर्षों के दौरान दो लाख से अधिक लोग मारे जा चुके हैं। इस देश में पिछले ही साल
कम से कम 75 हज़ार लोग मारे गए।
और रोज़ ही मारे जा रहे हैं । सीरिया में आतंकवादियों की
विध्वंसक कार्यवाहियों के कारण 38 लाख लोग भागकर सीरिया के बाहर चले गए जबकि 70 लाख
से अधिक लोग सीरिया के भीतर ही अन्य क्षेत्रों में पलायन करने पर विवश हुए हैं। उल्लेखनीय
है कि अभी हाल ही में घोषणा की गई है कि सीरिया को गृहयुद्ध से कम से कम 22 अरब डालर
की क्षति हुई है ।
लोग पूछते है की शिया-सुन्नी क्या है...???
अरे
मेरे भाइयो अगर मैं हज़ारो किताबो के तारीखी पन्ने को पढ़ने के बाद एक लाइन मे उत्तर
दू तो वो ये होगा-------
''इस्लाम के विरुद्ध किये गये विश्वासघात का नाम ही
"शियत"
और शियत
के द्वारा किये गये विश्वासघात को सहने और उसे डिफेंड करने का नाम "सुन्नियत"
है ॥ यह पूरे लेख का महफ़ूम है । अब इसके ऐतिहासिक पृश्टिभूमि पर नज़र गाड़ते हैं जो इस
संकट को समझने मे मदद करेगा ......... ॥ सीरिया (अरबी Sūrriya or Sūrya) आधिकारिक रूप से सीरियाई अरब गणराज्य , दक्षिण-पश्चिम एशिया
का एक राष्ट्र है। इसके पश्चिम में लेबनॉन तथा भूमध्यसागर, दक्षिण-पश्चिम में इसरायल,
दक्षिण में ज़ॉर्डन, पूरब में इराक़ तथा उत्तर में तुर्की है। इसराइल तथा इराक़ के
बीच स्थित होने के कारण यह मध्य-पूर्व का एक महत्वपूर्ण देश है। इसकी राजधानी दमिश्क
है जो उमय्यद ख़िलाफ़त तथा मामलुक साम्राज्य की राजधानी रह चुका है।अप्रैल 1946 में
फ्रांस से स्वाधीनता मिलने के बाद यहाँ के शासन में बाथ पार्टी का प्रभुत्व रहा है।
प्राचीन काल में यवन इस क्षेत्र को सीरीयोइ कहते थे। इस
पद का प्रयोग प्रायः सभी तरह के असीरियाई लोगों के लिए होता था। विद्वानों का कहना
है कि ग्रीक लोगों द्वारा प्रयुक्त शब्द असीरिया ही सीरिया के नाम का जनक है। असीरिया
शब्द खुद अक्कदी भाषा के अस्सुर से आया है।सीरिया शब्द का मतलब बदलता रहा है। पुराने
जमाने में सीरिया का अर्थ होता था। भूमध्यसागर के पूरब में मिस्र तथा अरब के उत्तर
तथा सिलीसिया के दक्षिण का क्षेत्र जिसका विस्तार मेसोपोटामिया तक और जिसे पहले असीरिया
भी कहते थे। रोमन साम्राज्य के समय इस सीरियाई क्षेत्रों को कई विभागों में बाँट डाला
गया था। जुडया (जिसको सन् 135 में फ़लीस्तीन नाम दिया गया - आज उस फलीस्तीन के अंतर्गत
आज का इसरायल, फिलीस्तीन तथा ज़ॉर्डन आते हैं) सबसे दक्षिण पश्चिम में था, फ़ोनेशिया
लेबनॉन में, कोएले-सीरिया तथा मेसोपोटामिया इसके खंडों के नाम थे।
इस्लाम में सीरिया का स्थान बहुत महत्वपूर्ण है। उम्मयद
खिलाफ़त (650-735) के समय दमिश्क इस्लाम की राजधानी था और मुसलमान दमिश्क की तरफ़ नमाज
अदा करते थे। सन् 1260 तक यह अब्बासियों के अधीन रहा जिसकी राजधानी बग़दाद थी। मंगोलों
के आक्रमण की वजह से 1258 में बग़दाद का पतन हो गया। मंगोलों की सेना की कमान कितबुगा
के हाथों सौप दी गई थी जिसको मिस्र के मामलुकों ने आगे बढ़ने से रोक दिया। मंगोलों
ने 1281 में मामलुकों पर दुबारा भारी आक्रमण किया पर वे हार गए। ये मंगोल पहले बौद्ध
थे ।
सन् 1400, तैमूर लंग, अथवा तमेरलेन ने सीरिया पर आक्रमण
किया और अलेप्पो तथा दमिश्क में भारी तबाही मचाई। भित्तिकारों को छोड़ कर सभी को मार
डाला गया और भित्तिकारों को समरकन्द ले जाया गया। तैमूर लंग के समय से सीरिया के स्थानीय
इसाईयों को प्रताड़ना दी जाने लगी क्यों की ये इस्लाम के पक्के विरोधी थे और जनसंहार
करना कुटिल चालें चलना इनके राग राग मे था । सोलहवीं सदी से लेकर बीसवीं सदी के आरंभ
तक यह उस्मानी साम्राज्य (ऑटोमन तुर्क) का अंग बना रहा।
इसके बाद यहाँ फ्रांस का शासन आया जो 1946 तक चला। इसके
बाद से यहाँ राजनैतिक अस्थिरता रही है। बाथ पार्टी ने शासन पर अपना सिक्का जमाया ।
सीरिया के लोग, चाहे वो मुस्लिम हों या इसाई, पूरे अरबी
लोग हैं - संस्कृति, भाषा और तहज़ीब के हिसाब से। सीरीयाई अरबों की आबादी सीरिया की
कुल आबादी का 90 प्रतिशत है। ग़ैर अरब अल्पसंख्यकों में से प्रमुख हैं: । कुर्द -
9%). कुर्द मुख्यतः उत्तर पूर्वी क्षेत्र में रहते हैं जो तुर्की तथा इराक के सटे क्षेत्र
हैं।
सीरिया की 90 प्रतिशत आबादी मुस्लिम है और 10 प्रतिशत ईसाई।
सुन्नी मुस्लिम कुल जनसंख्या के 74 प्रतिशत हैं जबकि शिया क़रीब 13 प्रतिशत ।दमिश्क
में कुछ यहूदी भी रहते हैं।यहीं पर शुरू होता है कुर्द , शिया ,और यहूदी के साथ साथ
इसाइयों का गठजोड़ ........ ॥
वर्तमान
मे सीरियाई गृह्युध्ह जो कि सीरियाई विद्रोह या सीरियाई संकट के नाम से भी जाना जाता
है, सीरिया में सत्तारूढ़ 'बाथ सरकार' के समर्थकों एवं विपक्षियो के बीच चल रहा सशस्त्र
संघर्ष है। यह संघर्ष १५ मार्च,२०११ को लोक-सम्मत प्रदर्शनों के साथ शुरू हुआ एवं अप्रैल,
२०११ तक पूरे देश में फैल गया। यह प्रदर्शन समस्त उत्तर-पूर्व में चल रही 'अरब क्रांति'
का हिस्सा थे। विरोधकर्ताओं की मांगें थी की राष्ट्रपति बशर-अल-अस्सद, जो कि १९७१ से
सीरिया में सत्तारूढ़ थे, पदत्याग करें एवं 'बाथ पार्टी' का शासन, जो कि १९६३ से आ
रहा है, का अंत हो। आवाम सुन्नी और हुकूमत का ताज शिया के सर पर । एक अहम बात अब आगे
का दृश्य देखिये ।
अप्रैल, २०११ में सीरियाई सेना को क्रांति के निर्देष मिले,
तथा सैनिकों ने पूरे देश में प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलाईं। महीनों की सैन्य घेराबंदी
के बाद यह विरोध सशस्त्र विद्रोह में बदल गया। आज विपक्षी ताकतें, जो कि मुख्यतः विरोधी
सैनिकों एवं नागरिकों से बनीं हैं एक केन्द्रीय नेतृत्व के बिना हैं। पूरे देश के कई
छोटे-बड़े नगरों में चल रहा यह विद्रोह असममात्रिक है। २०११ के अन्त में विपक्षी ताकतों
में इस्लामी संगठन 'जबात-उल-नसरा' का बढ़ता प्रभाव देखा गया। सन २०१३ में हिजबुल्ला
ने सीरियाई सेना की ओर से जंग में प्रवेश किया। सीरियाई सरकार को रूस एवं ईरान से सैनिक
सहायता प्राप्त है। समझ सकते हैं ईरान और रूस को । जबकि विद्रोहियों को क़तर एवं सउदी
अरब से हथियारों की पूर्ती हो रही है। जुलाई २०१३ तक सीरियाई सरकार देश की ३०-४० प्रतिशत
भूमि व ६० प्रतिशत जनता पर शासन कर रही है, जबकि विप्लवियों के नियंत्रण में देश के
उत्तर एवं पूर्व में भूमि है।
अरब संघ, संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोपीय संघ, एवं अन्य
देशों ने प्रदर्शनकारियों पर हिंसा के प्रयोग कि निंदा की। अरब संघ ने इस संकट पर राज्य
की प्रतिक्रिया के कारण सीरिया को संघ से निकाल दिया, एवं उसकी जगह सीरियाई राष्ट्रीय
गठबंधन, सीरिया के राजनीतिक विपक्षी समूहों के एक गठबंधन, को ६ मार्च २०१३ को संघ में
जगह दी
अब इसके
जलने और बर्बाद होने की पृष्टीभूमि पर एक दूरअंदेशी के साथ नज़र दौड़ाते हैं ।गोलान दक्षिण
पश्चिम का एक क्षेत्र है जो 1850 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र है। इस पहाड़ी क्षेत्र की
उँचाई 2500 मीटर से अधिक है और इससे मैदानी क्षेत्रों पर नियंत्रण रखने में आसानी होती
है। 1949 में इसरायल के साथ हुई एक संधि के मुताबिक इसके पास दोनों देशों की सीमा तय
हुई थी और इस पहाड़ी क्षेत्र को असैनिक क्षेत्र बनाने का फ़ैसला किया गया था। पर सीरिया
ने इस क्षेत्र का इस्तेमाल इसराइली किसानों पर निगरानी करने के लिए किया जिसके फलस्वरूप
इसरायल ने सन् 1967 में 6 दिनी लड़ाई में छीन लिया। इसका जवाब सीरिया ने यहूदी (इसरायल
के लोगों का धर्म) लोगों के पवित्रतम दिन योम किप्पुर के दिन सन् 1973 में इसरायल पर
आक्रमण करके देने की कोशिश की। इसके बाद 1974 में संयुक्त राष्ट्र के हस्तक्षेप के
बाद इसरायल ने गोलान के सीरियाइयों को सीरिया में व्यापार करने की इजाजत दे दी । गोलान
के सीरियाई छात्रों को सीचियाई विश्वविद्यालय में पढ़ने की भी अनुमति मिल गई ।है न
एक खूबसूरत चाल ? और इन सबके पीछे वही पुरानी कहानी है जो यहूदियों का ज़बरदस्त हाथ
रहा । इसको समझने के लिए एक और विश्लेषण ।
अमेरिका मे 71% ईसाई, 1.9% यहूदी व 0.9% मुसलमान तो साथ
मे 22.8% नास्तिक है। अमेरिका मे ईसाई बहुसंख्यक है जिनमे से प्रोटेस्टैंट ईसाइयो की
तादाद 46.5% है तो वही कैथोलिक ईसाइयो की तादाद 25.4% है लेकिन हैरानी की बात है की
अमेरिका मे कैथोलिक ईसाइयो की इतनी बड़ी तादाद होने के बावजूद अब तक सिर्फ़ एक ही राष्ट्रपति
इस फिरके से चुना गया जिसको राष्ट्रपति रहते हुये ही गोली मार कर हत्या कर दी गयी थी
और उस हत्या का आरोप अमेरिकी ख़ुफ़िया एजेंसी CIA पे लगता रहा है उस शख्स को दुनिया
जान एफ0 कैनेडी के नाम से जानती है । वरना जितने भी अमेरिकन राष्ट्रपति हुये है उनका
ताल्लुक प्रोटेस्टैंट फिरके से रहा है और ये फिरका यहूदियो से बेहद करीब रहा है। यह
बात संगयान रहे की ईसाइयत के दो बड़े फिर्को यानी की कैथोलिक और प्रोटेस्टैंट एक दूसरे
को काफ़िर कहते है व एक दूसरे को ईसाई नही मानते और इनके बीच 1618 से लेकर 1648 तक
भीषण युद्ध हुआ जिनमे लाखो लोग मारे गये थे । प्रॉटेस्टेंट फिरके की बुन्याद मार्टिन
किंग लूथर ने रखी थी जिसका उदय 16वीं शताब्दी के प्रारंभ में हुआ था । जो सलेबी जंग
{क्रूसेड वार} 1095 से लेकर 1291 तक ईसाइयो व मुसलमानो
के मध्य लड़ी गयी थी जबकी यह जंग मुसलमानो व यहूदियो के बीच थी जिसमे यहूदियो ने ईसाइयो
का खूबसूरती के साथ मुसलमानो के खिलाफ इस्तेमाल किया था । जिसमे ईसाइयो को बुरी तरह
हार का सामना करना पड़ा था और यहाँ से उनके पतन का दौर शुरू हुआ । जिसके फलस्वरूप पीटर
वाल्डो, जान टोलर व जान क्लिफ ने जन्म लिया और इस धर्म को टुकड़े टुकड़े करने मे अहम
योगदान दिया । एक अलग कहानी है मगर सीरिया से अलग नहीं है । कहने का अभिपर्याय सिर्फ़
इतना है की जब यहूदियो ने इसाइयों को जो की कैथोलिक ही थे, का सहयोग के नाम पे इस्तेमाल
किया जिसके नतीजे मे आज कैथोलिक फिरका पतन की ओर तेज़ी से अग्रसर है आज ठीक उसी तरह
यहूदी ईसाइयो के प्रोटेस्टैंट फिरके का अपने जातीय मकसद के लिये सहयोग के नाम पे इस्तेमाल
कर रहे है । जिनका आज अमेरिका के अंदर का उथल पुथल है तो क्या अमेरिका का वही अंजाम
होगा जो उस समय क्रूसेड वार के बाद कैथोलिक ईसाइयो की तर्जुमानि करते यूरोपियन देशो
का हुआ था...???और यही यहूदी अब शियाओं , कुर्दों और इसाइयों का इस्तेमाल सीरिया मे
कर रहे हैं ।
एक सोचने और मंथन करने का प्रश्न है और इसके बिना सीरिया
को समझना और आतंकवाद को समझना मुश्किल होगा ।एक पैनी इशारा यूएनओ मे सीरिया के राजदूत
ने किया है । आँखें खुल जाएंगी
संयुक्त
राष्ट्र संघ में सीरिया के स्थाई राजदूत ने कुछ पश्चिमी और क्षेत्रीय देशों के हस्तक्षेप
को सीरिया संकट को उभारने और इसे जारी रहने का अस्ली कारण बताया है।
बश्शार जाफरी ने बुधवार को संयुक्त राष्ट्रसंघ में एक प्रेस
कांफ्रेन्स में सीरिया की स्थिति के संबंध में कहा कि कुछ देश जिनका सुरक्षा परिषद
में प्रभाव है, अपने क्षेत्रीय घटकों के साथ मिलकर सीरिया में राजनीतिक शून्यता उत्पन्न
करने की चेष्टा में हैं ताकि वे सीरिया के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप कर सकें। बश्शार
जाफ़री ने कहा कि इन देशों को यह पता नहीं है कि सीरिया के लोग भविष्य का फ़ैसला ख़ुद
करने का संकल्प रखते हैं।''
बश्शार
जाफ़री ने सीरिया के संबंध में ''अमेरिका, कतर, सऊदी अरब और तुर्की की गलतियों की ओर
संकेत किया और कहा कि बहुत से युरोपीय देशों के आतंकवादी, तुर्की की सीमा से सीरिया
में प्रवेश करते हैं। उन्होंने आतंकवादियों के प्रति अमेरिका के वित्तीय एवं सैनिक
समर्थन की ओर संकेत करते हुए कहा कि जायोनी शासन भी इन गुटों का समर्थन करता है और
घायल आतंकवादियों का उपचार भी इस्राईल में होता है । यहां तक कि उनमें से कुछ का प्रशिक्षण
अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन में होता है। बश्शार जाफ़री ने सीरिया के मामलों में संयुक्त
राष्ट्र संघ और अरब संघ के संयुक्त दूत अख़ज़र इब्राहीमी के त्यागपत्र की ओर संकेत
करते हुए कहा कि इब्राहीमी ने अपने प्रतिनिधित्व काल में बहुत गलतियां की हैं उनमें
से एक ग़लती सीरिया के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप है।
.जो लोग इस्लाम जैसे मज़हब जिसका एक अर्थ बुद्धिजीवी वर्ग
ये भी निकालता है की "शांति" उसके साथ ऐसा घिनौना शब्द जोड़ना ''मुस्लिम
आतंकवाद '' क्या उचित है....???....आपको जान कर हैरानी होगी की इस दुनिया मे सबसे पहले
इस्लामिक आतंकवाद नाम के शब्द का प्रयोग हार्वर्ड यूनिवर्सिटी का प्रोफ़ेसर व अमेरिकन
एडवाइज़र व फारेन पॉलिसी मैगज़ीन का संस्थापक "सैमुअल फिलिप्स हनटिंगटन"
ने किया था ये वही सैमुअल फ़िलिप्स है जो अफ़ग़ानिस्तान व इराक़ पे दुनिया के सबसे
बड़े व संगठित आतंकवाद यानी की अमेरिका की इस आतंकवादी जोनूनीयत को न सिर्फ़ जायज़
ठहराता है बल्कि उसका दिफ़ा भी करता है यानी की इसका वही हाल है की "एक चोर चोरी
करे फिर भागते हुये किसी यात्री को चोर चोर पुकारे और पब्लिक उसे छोड़ उस बेकोसूर यात्री
के पीछे पड़ जाय और चोर चोरी कर जाय"।
यही
नहीं आपको ये जान कर भी हैरानी होगी की तुर्की मे कुर्दिस्तान वर्कर्स' पार्टी नाम
का एक आतंकवादी संगठन है जिसने 1984 से लेकर अब तक 45 हज़ार से अधिक लोगो का कत्ल-ए-आम
किया है लेकिन हैरानी की बात है की इतने लोगो के खून से सने संगठन को न सिर्फ़ फ्रांस,ब्रिटेन
व जर्मनी सपोर्ट करते है बल्कि इस संगठन की सहायता भी करते है और साथ मे इस संगठन के
वो आतंकवादी जिनके हाथ सैकड़ो लोगो के खून से रंगे हैं उन्हे न सिर्फ़ पनाह दी बल्कि
बहुत से आतंकियो को ट्रेनिंग भी दी जिन्होने बाद मे तुर्की मे वो हर काम किया जिससे
इंसानियत शर्मशार हो और ये सब सहायता सिर्फ़ इसलिए दी जाती है क्यूंकी इस संगठन की
विचारधारा लिब्रलिस्म व कम्युनीज़्म है और हैरानी की बात है की इस आतंकवादी संगठन को
सहायता प्रदान करने के वजह वो इसे सांस्कृतिक संगठन बताते है अब मुझे समझ मे नही आता
की लोगो का कत्ल करना कौनसी संस्कृति है....???....साथ मे एक बात पे आपका ध्यान केंद्रित
कराना चाहूँगा की क्या आपने कभी इस संगठन का नाम मीडिया मे सुना है...???...और अगर
नही तो उसका कारण क्या ये नही की सिर्फ़ इसलिये की इस संगठन की विचारधारा कम्युनीज़्म
है....वैसे साथ मे एक बात और फर्मा दू की इस संगठन की मदद करने वालो मे से सिरिया भी
था क्यूंकी सिरिया के राष्ट्रपति हाफ़िज़-अल-असद जो की मौजूदा राष्ट्रपति बिशार-अल-असद
है उसका बाप ने ,न सिर्फ़ उस संगठन को मदद की बल्कि उसके सरगना अब्दुल्ला ओजालान को
पनाह भी दी सिर्फ़ इसलिये क्यूंकी उसकी भी विचारधारा कम्युनीज़्म थी ध्यान रहे ये वही
हाफ़िज़-अल असद है जिसने 1982 मे शहर हमात मे एक रात मे 83 हज़ार सुन्नियो का कत्ल
कराया जो की मुस्लिम ब्रदरहुड से ताल्लुक रखते थे ॥
सभी के हाथ सीरिया
के लोगो के खून से सने है वो चाहे बिशार-अल-असद,हिज़्बुल्ला,मेहदी फोर्स,ईरान,व इराक़ी
आतंकवादी शिया संगठन,रूस व चीन हो या सऊदी अरब,लेबनान,जार्डन,UAE या फिर जर्मनी,ब्रिटेन,फ्रांस अमेरिका व इसराइल हो.......।
जब बिशार-अल-असद
ने सिरिया की अवाम पे जो उसके ज़ुल्म के खिलाफ सड़को पे उतर आई थी को पूरा पूरा मौका
फराहम किया इन अरब और यूरोपीयन देशो ने ताकि इनके अपने मफाद पूरे हो सके और उसपे कोई
आँच न आ सके तो वही रूस और चीन ने सिर्फ़ बिशार-अल-असद की इसलिये मदद की क्यूंकी उसकी
भी विचारधारा कम्युनिस्ट है तो ईरान व हिज़्बूशैतान ने सिर्फ़ इसलिये सिरिया के लोगो
का कत्ल-ए-आम करने मे बिशार-अल-असद की मदद की क्यूंकी वो उनके मसलक यानी की शिया है
।
.सब नंगे है इस खून के हम्माम मे............. ॥ ॥जारी है
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